श्री खेड़ा बालाजी (हनुमानजी) के पावन स्थल का इतिहास

राजस्थान राज्य के जयपुर जिला अन्तर्गत फागी तहसील में मायापुरा कस्बे में दो मील दक्षिण की ओर "खेड़ा" नाम गांव श्री हनुमानजी का प्रसिद्ध पावन स्थल है। यह स्थल मनोकामनाओं की पूर्तियों का सिद्ध स्थल है। विशाल मन्दिर में श्री हनुमानजी की विशाल भव्य "प्रतिमा" अपने आप में एक चमत्कार है। प्रति वर्ष हजारों भक्तों द्वारा पूजित यह मूर्ति स्वयम्भू अंकित होने से सिद्ध मूर्तियों के रूप में विद्यमान है।

सैकड़ों वर्ष पूर्व वर्तमान "खेड़ा" नामक गांव के स्थान पर जंगल था। विभिन्न वृक्षों से परिपूर्ण इस जंगल में करोड़ों दूधों की बहुचर्चा थी, प्रतिदिन आसपास के गांवों के ग्वाले इसमें अपने पशु चराया करते थे। इसी जंगल प्रभु की कृपा से मंगल हो गया।

दोपहर को प्रखर धूप, पशु वृक्षों की छाया में विश्राम कर रहे हैं। ग्वाले अपने ढोल की भक्ति में मगन हैं। एक स्वस्थ सुन्दर, धवल गव्य वृक्ष को संधन छाया से निकाल कर एक कार्तिक वृक्ष के समीप जाकर खड़ी हो जाती है। उसके स्तनों से दूध स्वतः प्रवाहित होकर धरती में समा रहा है। गाय प्रसन्नचित्त वापस अपने स्थान पर लौटकर छाया में बैठ जाती है। ग्वाले ढोल में व्यस्त हैं, यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा।

एक दिन उस गाय का ग्वाला दूरस्थ जल स्थान से पानी पीकर लौट रहा था कि उसको नजर अपनी प्यारी गाय पर पड़ी। वह प्रखर धूप में मंद गति से कार्तिक वृक्ष की ओर जा रही थी। ग्वाले को आश्चर्य हुआ, वह गाय को छाया में शीतल घास के लिये अट्ठाने लगा, तब अपने आँखों से देखा वह अभिमन्त्रणीय था। गाय प्रसन्न मुद्रा में कार्तिक वृक्ष के समीप खड़ी है, उसके स्तनों से दूध निकलकर धरती में समा रहा है।

ग्वाला अचंभित भाववाली कल्पना में खो गया। उसने सारी बातें और गांव के बड़े-बूढ़ों से इस वृक्ष में चर्चा की। उस गाय द्वारा घर पर दिए जाने वाले दूध में किसी प्रकार की कोई कमी न थी। गाय के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं था। अपितु पहले की अपेक्षा वह अधिक प्रसन्नचित्त रहती थी। अंत में तय हुआ कि जहां गाय खड़ी रहकर दूध गिराती है उस स्थान को बारिकता से देखा जाए।

उस स्थान को खोदते खोदते श्री हनुमानजी के ढोंटे वाली मूर्ति का ऊपरी सिरा दिखाई दिया। उपस्थित लोग हर्षातिरेक जय-जयकार कर उठे।

(दोहा)
द्वारपति पूजन किया, धीरज चरण अति नेह।
सिंहासन बैठाये के, जोरउ हर्ष सनेह॥

श्री हनुमानजी की विशाल काया, भव्य मूर्ति कार्तिक वृक्ष के समीप ही एक चबूतरा बनाकर, वृक्ष का सहारा देकर खड़ी कर दी गई। भक्तों तथा श्रद्धालुओं को बहुत ही भक्ति भाव अपने श्रद्धा सुमन चढ़ाकर, मंगल कामना करने लगी। श्लोक, अलंकारों की मधुर ध्वनियों प्रतिध्वनियों से वन प्रांगण गूंज उठा।

आसपास के सम्पूर्ण ग्रामीण क्षेत्र में श्री हनुमानजी की मूर्ति का प्रकटों से प्रसन्नता कारण विभिन्न चर्चाओं और चमत्कारों की लीलाएं भूमि चयन गया। श्री हनुमानजी ने स्वयं मूर्ति रूप अवतरित होकर इस क्षेत्र को कृतकृत्य कर दिया। जहां पर भी चर्चा होती रही है वहां से स्त्री पुरुषों का समूह अपने पारम्परिक रंगीन कार्यक्रमों में सम्मिलित होता रहा।